Sunday, September 17, 2017

dard bhari shayri

dard bhari shayari
उलझन 

बेवजह छोटी सी बात पे तालमेल सारे बिगड़ गए 
बात ये थी कि सही "क्या" है और वो सही "कौन" पर उलझते गये!
उलझन हमे भी है
हम उलझे हुए हैं अपनी जिन्दगी की उलझनों मे आज कल
आप ये न समझना के अब वो लगाव नहीं रहा
हम लौट आयेगे
पुराने मौसम की तरह |
हमे सुलझने का मौका तो दो

dard bhari shayari
इंसानियत की सख्सियत




थक गया हूँ अब मैं जिन्दगी के झमेले मे
गुम हो गया हूँ दुनिया के मेले मे
मेरा वजूद क्या हैं ? मेरी हकीकत क्या है
पुछता हूँ अपने आप से यह सवाल अकेले में
कोई जवाब नही आता सब धुँधला दिखता हैं
क्या मै भी ऐसी 'इंसानियत` की शख्सियत हूँ
जो हो गुनहगार पर मासुम लिखता है?
काश किसी जगह मिल जाए इस दिल को सुकून
आँख बंद हो जाए सर्द हो जाए ये गर्म खुन
सांस थम जाऐ उभरते जज्बात खामोश हो जाएँ
कत्ल हो जाए दिल ओ दिमाग का जुनून
बहुत देख लिया बहुत सोच लिया गम का जाम सुबह शाम पी लिया
फरेब ऐ नजर से हयात बेइत्मेनान है काँपते होठो को मैंने कस के सी लिया


                                                                                           (एक सोच)

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