Sunday, October 15, 2017

Dard bhari shayari


दर्द शायरी 


मेरी अल्फाज़ो की जरुरत हि क्या है ?
कभी इन आँखों में झांको तो सही |


ए खुदा तू ऐसा तराजू बता,
कि मेरी मुहब्बत तौल सकूँ
किसी ने मुहब्बत में सबूत माँगा है



मुझसे खफा है,
या तू भी एक बेवफा है ?
ए नींद तू ही बता क्या तेरी 'रजा' है ?


अधूरी मुहब्बत तो नाज़-ए-हक़दार है यारो
सच्ची मुहब्बत मुक्कमल ही कब हुयी|


कुछ इस कदर किसी ने ज़िन्दगी के पन्नो को बिखेरा,
की अये मेरे दोस्त,
हम हर बार बिखरे
समेटने की कोशिस में



©( एक सोच )

Thursday, October 12, 2017

shayari

शायरी 

१ फुर्सत से कभी मिलो,
तो बयां आरज़ू करें |

अब इन नकाबपोशों के भीड़,
में क्या गुफ़त्गू करें |



२ धड़कनों के दरमियाँ एक आहट सी हुई,
हम बैचैन से हुए,
कुछ बात हुई
फिर क्या था हम भी समझ गए ये इत्तेफाक से मोहब्बत हमें भी हुई |



३ अपनी सूरत-ए-हाल क्या कहूँ मेरे यारा
बस दर्पण सा हो गया हूँ
इस ज़माने को देखकर



४ लड़ ले ज़िन्दगी की लड़ाई एकाकी,
की ए मुशाफिर
तस्सली देने वाले कभी साथ नहीं देते |



५ होगा मुक्कमल मेरा इश्क़ भी,
खुदा की रहमत बरसेगी उसदिन
ऐसी उम्मीद भी तो नहीं है |
मगर इंतजार नहीं,
बात ऐसी भी तो नहीं |


६ ज़िन्दगी एक रंगमंच है,
इसके किरदार बड़े कठिन हैं,
रिश्तो को समेटने के लिए,
इंसान को बिखरना पड़ता है

              (एक सोच)

Sunday, October 8, 2017

आखिर कब तक ?

आखिर कब तक ?


14 बाबा फर्जी घोषित

इलाहाबाद के बाघंबरी मठ में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की विशेष बैठक में 13 अखाड़ा के 26 संत शामिल थे।इस बैठक के दौरान 14 नाम सार्वजनिक किये गए |  इस बैठक में उनके सामूहिक बहिष्कार का भी फैसला किया गया।
1- आसाराम बापू उर्फ आशुमल शिरमलानी
2- सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां
3- सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता
4- गुरमीत सिंह राम रहीम सच्चा डेरा, सिरसा5-...
6-...
......
......
14-......


यह तो उन लोगो की लिस्ट है जिनका सक्षत्कार हुआ है पब्लिक के सामने
वरना बाबाओ की कमी कहा इस देश में
दीनानाथ बाबा, रामशंकर बाबा, रामनिवास बाबा,
फलां  बाबा चीलां बाबा,ब्लाह ब्लाह ब्लाह इनकी गिनती करें तो मुश्किल है या यूँ कहे की अनगिनत हैं
अब आते है मुद्दे की बात पर, लिस्ट जारी की गयी,
यह तो होना ही था | पर प्रश्न यह है कि यह लिस्ट अब क्यूँजारी किया गया ??बाबाओ के ऊपर आरोप ये कोई नयी बात नहीं,बाबाओ के ऊपर आरोप कई सालो से लगते आ रहे हैं |और आरोपों की गंभीरता भी संगीन रही है।
क्या इसमे यह प्रश्न नहीं छुपा है कि बाबा वर्ग पर अब जनता का मोह पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है?
इस वर्ग पर लोगों का मोह बरकरार रहे इसलिए यह लिस्ट जारी हुई है।
ध्यान देने योग्य है कि पहले बाबा नहीं, संत होते थे। समाज की सेवा के लिए उनका योगदान अतुलनीय हुआ करता था। संत साई बाबा जिन्होंने अपना सारा जीवन भिक्षा लेकर गुजार दिया,
उनके भक्त अरबों का सोना उन पर चढ़ाते हैं।
यह एक विरोधाभास है।
जहाँ 1789 में फ्रांसीसी क्रांति ने पॉप को सीमित अधिकारों के दायरे में ला दिया था, बाबा और मौलवी आज भी अनुच्छेद 25-28 का फायदा असीमित साधनों को जमा करने में लगाते हैं।
क्या यह समय का दस्तूर नहीं कि धर्म के नाम पर कारोबार बंद हो।
धर्म जब अपने पवित्र रूप में होता है तो जीवन जीने, सीखने और मानवता की शिक्षा देता है और जब विकृत रूप में होता है तो आतंकवादी, अंधविश्वास, विक्षिप्त बाबा और मौलवी पैदा करता है।
धर्म कबीर, दयानंद सरस्वती, विवेकानंद और अब्दुल कलाम बनाता है, तो ओसामा बिन लादेन भी।
धर्म की सही समायाकूल सही व्याख्या, प्रश्न करने की संस्कृति और जागरूकता आज की जरूरत है।
लोगो को अम्ल करने की जरुरत है खुद से यह सवाल पूछने की जरुरत है|
आखिर कब तक बाबाओ का ये गोरखधंधा चलेगा?

राजनीती की भाषा



मत , मतदान और मतदाता
राजनीती है तो वोटबैंक है ......
अरे भैया जब वोटबैंक है तो वोटबैंक की राजनीती तो होगी ही 
पर इतनी गन्दी 😳🤔

सबसे पहले तो ये की बचपन की कुछ कहावते 
"हमाम में सभी नंगे है "
" सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है "
"मेंढकी को कभी जुकाम नहीं होता "

अब बात कहा से शुरू की जाये ये भी समस्या है क्योकि लोग अविलम्ब ही भक्त घोषित कर देंगे तो बात शुरू करते है
 साक्षी महराज से जिनके बारे में ये कहना की " हम तो बोलेंगे " गलत नहीं होगा . अभी अभी इन्होने " लव चार्जर " बाबा राम रहीम का समर्थन करके वोट बैंक की ताकत और अपनी मानसिकता प्रकट कर दी .
शरद यादव को सुनो मेरी समझ से इनके लिए यही कहूंगा "मतलब कुछ भी " 
जैसे बोल दिया - "वोट की इज्जत बेटी की इज्जत से बड़ी है"

एक सवाल मन में उठता है.
इन्हें नेता किसने बना दिया. क्यों बना दिया?
कैसे हम लोग इतने साल से ऐसे नेताओं को ढो रहे हैं?
ऐसे ‘अनुभवी नेता’ की ओर से ऐसा दकियानूसी बयान आना हताश करता है.
‘बेटी की इज्जत जाएगी तो गांव-मोहल्लों की इज्जत जाएगी,
वोट एक बार बिक गया तो देश की इज्जत और आने वाला सपना पूरा नहीं हो सकता.’
ये हमारे प्रिय नेता जी किसकी बेटी की बात कर गए समझ नहीं आया अपनी या वोटर की और वोटर फिर यही समझ रहा नेताजी की जय रैली हुयी समर्थन भी मिला .

हमारे धरती पकड़ नेता माननीय मुलायम सिंह जी "लड़का सेट हो जाये " 
सेट करने के चक्कर में बोल दिया ",लड़के है गलती हो जाती है तो क्या फांसी दे दोगे " अरे एक बार ये तो सोच लेते की गलती क्या है आपकी पार्टी की प्रचारक भी आपकी बेटी जैसी बहु ही है खैर हमें क्या हम तो समर्थक है नेता जी ने कहा है तो सही ही है "जय समाजवाद"


अब बात आती है कांग्रेस की भाई आपने जो देश के लिए किया हम आपके सभी अच्छे कार्यो का समर्थन करते है और धन्यवाद भी , परन्तु आप लोग ये मानते भी हो की राहुल बाबा को जमीनी जानकारी थोड़ी कम है फिर भी किस आधार पर समर्थन "युवराज " है बस इसलिए 
नहीं भाई हमसे ये नहीं होगा भारत अभी जमीनी (विकासशील) अवस्था में है तब तक ये राज परिवार से मुक्ति लेकर अपने वरिष्ठ , कर्मठ जिनकी कोई कमी नहीं है कांग्रेस में लाओ और केवल विरोध के लिए विरोध मत करो
बड़ी आसानी से आप आरोप लगा देते हो मायावती टिकट बेचती है अरे
खरीदने तो आपके क्षेत्र का निकम्मा ही गया उसने खरीदा नहीं आपका "वोट" बेचा है साहब "
हम खुद कहते है अरे ये तो पिछली बार फलां पार्टी में थे अब इसमें नहीं नहीं अब इनको इस पार्टी की सच्चाई पता लग गयी तभी छोड़ दिए , नहीं भाई अब उस पार्टी की हवा नहीं है 

राजनेताओ के मुद्दे - दलित उत्थान , गरीबी हटाओ , महिला शशक्तिकरण
केवल मुद्दे ही बन कर रह गए , हर बार यही कहा जाता है मतदान अवश्य करे ,आपका एक वोट देश के निर्माण में सहयोगी है !

परन्तु सोचने की बात ये है निर्माण हो किस का रहा नेताओ के महल का , उनके बच्चे के भविस्य का ,
आज का नेता जिसकी शुरुवात दलित उत्थान , महिला उत्थान ,

गरीब उत्थान से होती है परन्तु कैसे गरीब उत्थान करने वाला वो नेता खुद लिनेन , टाइटन और रेड चीफ में होता है अगर नहीं होगा तो कोई उसे नेता समझेगा ही नहीं 
तो अहम मुद्दा है जागरूकता का जिसके बिना बदलाव की शायद कल्पना भी नहीं कर सकते !!
अब परिवर्तन का एक मात्र विकल्प जागरूकता है क्योकि अब लाल बहादुर शास्त्री , राम मनोहर लोहिया ,श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे बलिदानी नेता नहीं होने वाले और होंगे भी तो ये सिस्टम उनको ऊपर नहीं जाने देगा

हमारे देश मे मरती इन्सानियत

"हमारे देश मे मरती इन्सानियत"



"हमारे देश मे मरती इन्सानियत " क्या एक नागरिक दूसरे नागरिक को अपना भाई समझता है और ये समझता है 
कि ये खुदा का बनाया हुआ मेरी तरह इन्सान है?
अगर यह सवाल आप अपने आप से पूछे तो आपका भी जवाब होगा-
बिल्कुल नहीं!
हर व्यक्ति दूसरे को इस नजर से देखता है कि एक शिकार है
एक कीमती इन्सान से एक मनोरंजक जानवर का सा व्यवहार किया जाता है....
हमारी नजर
इसके धड़कते हुए दिल
इसकी सुलगती हुई आत्मा,
इसके बिलखते हुए बच्चों,
इसकी बूढ़ी मां और
इसके गरीब परिवार पर नहीं होती,


(होता है क्या ? यह सवाल कभी एकांत में खुद से पूछना | पूछना जरूर)
हमारी नजर इसकी जेब के चार पैसों पर होती है।
हमारी नजर तो इसकी भोलेपन में होती है ताकि आसानी से इस्तेमाल किया जा सके


 

पूरे देश का ये हाल हो गया है कि किसी को किसी से कोई हमदर्दी नहीं होती,
पूरा देश एक बाजार और जुए का अड्डा बन गया है, जिसमें एक की जीत और हजारों की हार है,
किसी के दिल मे कोई ऊंची सोच,बलन्द जज्बा,इन्सानियत की कद्र,खुदा का डर बाकी नहीं रहा।
इन्सानियत को इसपर अफसोस करना चाहिए
और वतनपरस्ती के दावेदारों को शर्म करनी चाहिए कि हमारा देश किस गर्त मे जा रहा है।
आओ देश को बचाने के लिए हम सब इन्सानियत अपनायें।



                     (एक सोच)