"हमारे देश मे मरती इन्सानियत"
"हमारे देश मे मरती इन्सानियत " क्या एक नागरिक दूसरे नागरिक को अपना भाई समझता है और ये समझता है
कि ये खुदा का बनाया हुआ मेरी तरह इन्सान है?
अगर यह सवाल आप अपने आप से पूछे तो आपका भी जवाब होगा-
बिल्कुल नहीं!
हर व्यक्ति दूसरे को इस नजर से देखता है कि एक शिकार है
एक कीमती इन्सान से एक मनोरंजक जानवर का सा व्यवहार किया जाता है....
हमारी नजर
इसके धड़कते हुए दिल
इसकी सुलगती हुई आत्मा,
इसके बिलखते हुए बच्चों,
इसकी बूढ़ी मां और
इसके गरीब परिवार पर नहीं होती,
एक कीमती इन्सान से एक मनोरंजक जानवर का सा व्यवहार किया जाता है....
हमारी नजर
इसके धड़कते हुए दिल
इसकी सुलगती हुई आत्मा,
इसके बिलखते हुए बच्चों,
इसकी बूढ़ी मां और
इसके गरीब परिवार पर नहीं होती,
(होता है क्या ? यह सवाल कभी एकांत में खुद से पूछना | पूछना जरूर)
हमारी नजर इसकी जेब के चार पैसों पर होती है।
हमारी नजर तो इसकी भोलेपन में होती है ताकि आसानी से इस्तेमाल किया जा सके
पूरे देश का ये हाल हो गया है कि किसी को किसी से कोई हमदर्दी नहीं होती,
पूरा देश एक बाजार और जुए का अड्डा बन गया है, जिसमें एक की जीत और हजारों की हार है,
किसी के दिल मे कोई ऊंची सोच,बलन्द जज्बा,इन्सानियत की कद्र,खुदा का डर बाकी नहीं रहा।
इन्सानियत को इसपर अफसोस करना चाहिए
और वतनपरस्ती के दावेदारों को शर्म करनी चाहिए कि हमारा देश किस गर्त मे जा रहा है।
आओ देश को बचाने के लिए हम सब इन्सानियत अपनायें।
(एक सोच)
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