शायरी
१ फुर्सत से कभी मिलो,
तो बयां आरज़ू करें |
अब इन नकाबपोशों के भीड़,
में क्या गुफ़त्गू करें |
२ धड़कनों के दरमियाँ एक आहट सी हुई,
हम बैचैन से हुए,
कुछ बात हुई
फिर क्या था हम भी समझ गए ये इत्तेफाक से मोहब्बत हमें भी हुई |
३ अपनी सूरत-ए-हाल क्या कहूँ मेरे यारा
बस दर्पण सा हो गया हूँ
इस ज़माने को देखकर
४ लड़ ले ज़िन्दगी की लड़ाई एकाकी,
की ए मुशाफिर
तस्सली देने वाले कभी साथ नहीं देते |
५ होगा मुक्कमल मेरा इश्क़ भी,
खुदा की रहमत बरसेगी उसदिन
ऐसी उम्मीद भी तो नहीं है |
मगर इंतजार नहीं,
बात ऐसी भी तो नहीं |
६ ज़िन्दगी एक रंगमंच है,
इसके किरदार बड़े कठिन हैं,
रिश्तो को समेटने के लिए,
इंसान को बिखरना पड़ता है
तो बयां आरज़ू करें |
अब इन नकाबपोशों के भीड़,
में क्या गुफ़त्गू करें |
२ धड़कनों के दरमियाँ एक आहट सी हुई,
हम बैचैन से हुए,
कुछ बात हुई
फिर क्या था हम भी समझ गए ये इत्तेफाक से मोहब्बत हमें भी हुई |
३ अपनी सूरत-ए-हाल क्या कहूँ मेरे यारा
बस दर्पण सा हो गया हूँ
इस ज़माने को देखकर
४ लड़ ले ज़िन्दगी की लड़ाई एकाकी,
की ए मुशाफिर
तस्सली देने वाले कभी साथ नहीं देते |
५ होगा मुक्कमल मेरा इश्क़ भी,
खुदा की रहमत बरसेगी उसदिन
ऐसी उम्मीद भी तो नहीं है |
मगर इंतजार नहीं,
बात ऐसी भी तो नहीं |
६ ज़िन्दगी एक रंगमंच है,
इसके किरदार बड़े कठिन हैं,
रिश्तो को समेटने के लिए,
इंसान को बिखरना पड़ता है
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